सत्यवादिता विषय पर 250-300 शब्दों मे निबंध लिखें
परिभाषा- जीवन को संस्कृति के अनुसार ढालने के लिए मानव समुदाय को कुछ मूल्यों को अपनाना होता है, जिनमें सत्य, ईमानदारी जैसे गुण मूल में होते हैं। हमेशा सत्य वचन कहने वाले को सत्यवादी कहा जाता है। भारत में राजा हरिश्चन्द्र को हर कोई जानता है जो अपनी सत्यवादिता के कारण अमर हो गए। हमें सत्यवादी को समझने से पूर्व सत्यता के अर्थ स्वरूप और प्रभाव को जानना होगा। सत्यता का अर्थ होता है सत्य का स्वरूप। उसे धारण करने वाली सत्यवादी कहलाता है। सत्य शब्द का निर्माण संस्कृत की सत् धातु एवं ल्यप प्रत्यय लगने से बनता है, जिसका संस्कृत में आशय अस्ति से होता है।
महत्ता- जीवन की प्रत्येक परिस्थिति चाहे वह हमारे अनुकूल हो या प्रतिकूल उसमें सत्य का साथ न छोड़ना हो सत्यता या सत्यवादिता कहलाता है। कबीरदास ने सत्य के महत्व को स्वीकारते हुए एक उक्ति कहीं थी सांच बराबर तप नहीं झूठ बराबर पाप। भारत की संस्कृति में सत्यवादिता को महान गुण माना है। दशरथ अपने सत्य वादन एवं वचनों के पक्के हुआ करते थे। कैकेयी को दिए वचन के अनुसार अपने प्रिय पुत्र को भी सत्य की खातिर वनवास भेजा। इनसे पूर्व राजा हरिश्चन्द्र ने सत्य की राह को अपने जीवन को खफा दिया था। इन्होंने सत्य का पालन करते हुए डोम के हाथों अपनी पत्नी और बेटे को भी ब्राह्मण के हाथों बेच दिया। जीवन में घोर यातनाएँ सहने के बाद भी उन्होंने सत्य के मार्ग से स्वयं को जरा भी विचलित नहीं किया। महाभारत में भी सत्यवादी भीष्म पितामह का प्रसंग मिलता है, जिन्होंने अपनी प्रतिज्ञा के पालन के लिए साहस नहीं छोड़ा। आधुनिक युग में गाँधी को सत्यवादी कहा गया। इस तरह हम समझ सकते हैं प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक सत्यवादी लोग अमर हुए।
उपसंहार- वस्तुतः सत्यभाषण और सत्यपालन के अमित फल होते हैं। सत्य बोलने का अभ्यास बचपन से ही डालना चाहिए। कभी-कभी झूठ बोल देने से कुछ क्षणिक लाभ हो जाता है, बच्चे झूठ बोलकर माँ-बाप से पैसे झटक लेते हैं, पढ़ाई का बहाना करके सिनेमा चले जाते हैं। किंतु, यह क्षणिक लाभ उनके जीवन-विकास का मार्ग अवरुद्ध कर देता है। उनके चरित्र में छिद्र होने लगता है और रिसता हुआ चरित्र कभी महान हो नहीं सकता .
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